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कैबिनेट के फैसले का स्वागत टीम अन्ना को संसद पर भरोसा करना चाहिए, एक पत्रकार या किसी अन्य क्षेत्र का व्यक्ति क्यों नहीं?

नई दिल्ली, 21 दिसंबर, 2011, अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, डॉ0 उदित राज ने कहा कि कैबिनेट का फैसला स्वागत योग्य है, जहां तक बहुजन लोकपाल बिल की मांगों का संबंध है। बहुजन लोकपाल बिल 24 सितंबर को संसद की स्थायी समिति के सामने पेश किया गया था, जिनमें मुख्य मांगें दलितों, आदिवासियों,
पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों को लोकपाल में आरक्षण थीं और वह कैबिनेट ने मान ली है। इसके अतिरिक्त स्वयंसेवी संस्थाएं, मीडिया एवं उद्योगजगत को शामिल करने की बात थी, उसे भी स्वीकार कर लिया गया। परिसंघ के बैनर के नीचे गत् 24 अगस्त को इंडिया गेट पर और 28 नवंबर को जंतर-मंतर पर रैलियां इन मांगों को लेकर की गयी थीं। हमने यह भी मांग की थी कि संविधान के ऊपर लोकपाल यदि बैठाया जाता है तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। संविधान बचाने एवं आरक्षण के लिए देशव्यापी आंदोलन हमने किया और सरकार ने बात मानी, उसके लिए हम उसका धन्यवाद देते हैं। जहां तक लोकपाल में आधे जजों अर्थात 4 जज शामिल करने की बात है वह उचित नहीं होगा। अनुभव बताते हैं कि जजों को वरीयता देने से परिणाम अच्छे नहीं रहेगें। ज्यादातर आयोगों एवं कई सरकारी संस्थाओं के अध्यक्ष एवं मेंबर इनको बनाया गया लेकिन परिणाम उचित नहीं रहे। अधिक से अधिक एक या दो जजों को रखा जा सकता है। एक पत्रकार भी लोकपाल बन सकता है। हो सकता है कि वह कहीं ज्यादा प्रभावशाली साबित हो। क्यों नहीं शिक्षा या अन्य क्षेत्र से लोकपाल बनाया जा सकता? आधे सदस्य आरक्षण से होगें और आधे जज हो जाएंगें तो सामान्य वर्ग के प्रतिभाशाली एवं योग्य व्यक्ति को लोकपाल की संस्था में सेवा देना मुश्किल हो जाएगा। डॉ0 उदित राज ने आगे कहा कि टीम अन्ना को समझना चाहिए कि उनकी बातें सरकार क्यों नहीं मान रही है? प्रथम, उनकी मांग लोकपाल को संविधान के ऊपर बैठाने की बात है। क्या गारंटी है कि लोकपाल भ्रष्ट नहीं होगा? लाखों वोटों से सांसद चुनकर लोकसभा में आते हैं और आगे भी उन्हें चुनाव लड़ना होता है। जनता का इतना बड़ा अंकुश होने के बावजूद तमाम सांसद एवं नेता भ्रष्ट हो जाते हैं तो क्या गारंटी है कि लोकपाल, जो पांच या सात लोगांे के द्वारा चुना जाएगा, वह भ्रष्ट नहीं होगा? निःसंदेह अन्ना टीम के द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध चलाए गए आंदोलन से देश में जागृति आयी है, लेकिन उन्हें यह भी समझना चाहिए कि भ्रष्टाचार का स्वरूप सामाजिक है। जाति व्यवस्था अपने आप में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। मान लिया जाए कि जो लोग आज नौकरशाही एवं राजनीति में हैं, उन सबको बाहर कर दिया जाए और उनकी जगह पर भ्रष्टाचार के विरूद्ध चाहे अन्ना टीम की कैंप के हों या बाबा रामदेव के, बैठा दिया जाए तो बहुत संभव है कि उतना ही भ्रष्टाचार तब भी रहेगा, जितना आज है। राम लीला मैदान में या जंतर-मंतर पर जुटी भीड़ से सरकार को झुकाया नहीं जा सकता क्योंकि इसके पीछे बड़े वोट बैंक का सपोर्ट नहीं है। भले ही आंदोलन छोटा हो लेकिन अगर उसके पीछे देश की जनता के एक बड़े हिस्से का समर्थन है तो सरकार को झुकना पड़ता है। अन्ना टीम को देश की सामाजिक परिस्थिति को समझना चाहिए। हमारे आंदोलन के दबाव से अन्ना हजारे एवं उनके साथियों ने न केवल दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों को अपने आंदोलन से जोड़ने की बात कही बल्कि आरक्षण का भी आधे-अधूरे मन से समर्थन किया। समाज के इतने बड़े हिस्से का समर्थन इनके पास नहीं है, इसलिए उतना सरकार पर दबाव नहीं बन पा रहा है। संसद में केवल सत्ता पक्ष के लोग ही नहीं हैं, बल्कि विपक्ष के भी लोग हैं, अतः अन्ना टीम को संसद पर भरोसा करना चाहिए। 120 करोड़ जनता के द्वारा चुनी गई संसद पर यदि भरोसा नहीं करेगें तो इसका क्या विकल्प है?(अभिशेक कटियार)मीडिया प्रभारी 09711159868

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