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बिना वकील जीत ली जंग, मिसाल बनी

हक की लड़ाई कैसे लड़ी जाती है और बेपढ़ होना भी इसके आड़े नहीं आता, दलित समाज से ताल्लुक रखने वाली धर्मी देवी ने इस बात को साबित कर दिया है. हिमाचल प्रदेश के मंडी में इस अनपढ़, दलित महिला ने आरटीआई कानून के बलबूते न केवल अपने हक की लड़ाई जीती, बल्कि अपने जैसे सात अन्य लोगों को भी नौकरी वापस दिलवाई. लड़ाई में जीत के बाद गोहर विकास खंड के दूर दराज थारजूण पंचायत की धर्मी देवी को बीएसएनएल ने फिर से नौकरी पर रखने के आदेश दिए हैं.
उसी की तरह जबरन बाहर किए गए सात अन्य लोगों को भी फिर से नौकरी पर बुला लिया है. हक की लड़ाई जीत कर धर्मी देवी पढ़े लिखे समाज के लिए भी प्रेरणा बन गई हैं जो कानून की जानकारी के अभाव में अपने हकों की लड़ाई नहीं लड़ पाते. यह भी कम हैरानी की बात नहीं है कि धर्मी देवी ने अपनी लड़ाई बिना किसी वकील के जीती. 
दलित और उसमे भी महिला होने के कारण 11 साल पार्ट टाइम नौकरी करने वाली धर्मी देवी को बीएसएनएल ने गैर कानूनी ढंग से निकाल दिया था. उसके 16 माह के वेतन पर रोक लगा दी गई थी. लेबर कोर्ट मंडी ने 28 नवंबर को बीएसएनएल को आदेश दिए कि 12 दिसंबर से पहले धर्मी देवी का पिछले 16 महीनों को वेतन दिया जाए. हालांकि अभी तक नौकरी की बहाली के बारे में कोई निर्देश लेबर कोर्ट की ओर से नहीं दिए गए थे, लेकिन बीएसएनएल ने गलती सुधारते हुए धर्मी देवी को नौकरी पर रखने के आदेश दिए हैं. जिला श्रम अधिकारी आरएस राणा ने इसकी पुष्टि की है. धर्मी देवी को वेतन भी जारी कर दिया गया है. वहीं, धर्मी देवी का कहना है कि इस सारी लड़ाई में आरटीआई कानून उसका काफी मददगार बना. लेकिन अपने हक के लिए धर्मी देवी को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. धर्मी देवी को जुलाई 2010 में बीएसएनएल ने नौकरी ने हटा दिया था. अगस्त में उसने आरटीआई के तहत 11 साल काम करने के सबूत जुटाना शुरू किए. अपनी नौकरी से संबंधित दस्तावेज हासिल करने के लिए उसे प्रदेश सूचना आयुक्त के कार्यालय तक अपनी लड़ाई लड़नी पड़ी. अपनी नौकरी से संबंधित सबूत जुटा कर लेबर कोर्ट मंडी में बीएसएनएल के खिलाफ मामला दर्ज करवाया. लेबर कोर्ट में उसका दावा मजबूत था. कोर्ट की ओर से बीएसएनएल के मंडी स्थित जीएम से भी इस बारे में जवाब तलब किया.
इस मामले में धर्मी देवी का महिला और दलित होना बीएसएनएल के अधिकारी को अखर गया था. सवा साल पहले एक्सचेंज केलोधार में तैनात हुए एसडीओ ने इस वजह से उसे नौकरी से हटा दिया था कि वह महिला कर्मचारी के बजाय पुरुष कर्मचारी को रखना चाहते थे. दलित परिवार से संबंध रखने वाली धर्मी देवी को इसी कारण गैर कानूनी ढंग से बाहर का रास्ता दिखाया गया था.

दैनिक भास्कर

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