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'भारत में हैं दुनिया के सबसे ज़्यादा ग़रीब'

बुधवार, 2 नवंबर, 2011 को 17:45 IST तक के समाचारसंयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी की गई मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत में, दुनिया के सबसे ज़्यादा बहुआयामी ग़रीब रहते हैं.


भारत में 61 करोड़ लोग ग़रीब हैं, जो कि देश की आधी आबादी से भी ज़्यादा है.
रिपोर्ट में 'बहुआयामी ग़रीबी' का मूल्यांकन करने के लिए आय के अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को भी तरजीह दी गई.




रिपोर्ट के मुताबिक बहुआयामी ग़रीबों की संख्या निकालने वाला ये सूचकांक एक समुचित-सटीक तस्वीर पेश करता है जो कि केवल आय के मानकों से संभव नहीं हो सकती.


इस सूचकांक के मुताबिक़ दुनिया के दस सबसे ग़रीब देश तो सब-सहारा अफ़्रीका में हैं, लेकिन अगर किसी एक देश में कुल संख्या की बात की जाए तो दुनिया के सबसे ज़्यादा ग़रीब दक्षिण एशियाई देशों (भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश) में रहते हैं.


भारत सरकार ने देश में ग़रीबों की संख्या आंकने के लिए कई तरीके अपनाए हैं और सरकार ये मानती है कि देश की एक-तिहाई जनता ग़रीबी रेखा के नीचे रहती है.
असमान मानव विकास


यूएनडीपी की इस रिपोर्ट में मूल तौर पर मानव विकास सूचकांक निकाला जाता है जो मानव विकास के तीन प्रमुख आयामों, शिक्षा, स्वास्थ्य और आय में हुई प्रगति के आधार पर देशों को श्रेणीबद्ध करता है.


वर्ष 2011 में अब तक के सबसे ज़्यादा 187 देशों को श्रेणीबद्ध किया गया जिनमें भारत 134वें पायदान पर रहा.


चीन, 101वें पायदान पर और पाकिस्तान 145वें पायदान पर है.


नार्वे, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड सूची में सबसे ऊपर रहे, अमरीका चौथे और जापान 12वें नंबर पर रहा.


1980 से 2011 के समयावधि में दक्षिण एशिया के कई देशों की तरह भारत की मानव विकास की दर बढ़ी है. लेकिन अगर इसके लिए जांचे गए तीनों आयामों में व्याप्त असामनताओं को संज्ञान में लिया जाए तो सभी देशों में दर गिर जाती है.


पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियां रिपोर्ट में पाया गया है कि ‘प्रदूषण, वनों की कटाई और बढ़ता जलस्तर एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए ख़तरे की घंटी है’.


रिपोर्ट के मुताबिक औद्योगिक विकास और वनों की कटाई की वजह से जो पर्यावरणीय चुनौतियां दुनिया के सामने हैं उन्होंने देशों के भीतर व्याप्त असमानताओं को और बढ़ा दिया है.


रिपोर्ट बताती है कि पिछले वर्षों में मानव विकास में हुई प्रगति के बावजूद आय के वितरण की स्थिति और बिगड़ी है, गहरी लैंगिक असमानता बरक़रार है और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है.


इस सबका सबसे बुरा असर सर्वाधिक ग़रीब परिवारों और समुदायों पर हो रहा है.


निष्कर्ष के तौर पर कहा गया है कि दक्षिण एशिया अगर मानव विकास की वर्तमान दर को क़ायम रखना चाहता है तो उसे भीषण ग़रीबी और आंतरिक असमानताओं पर क़ाबू पाना होगा.


यानी शिक्षा, स्वास्थ्य और आय के मानकों पर विकास तो हुआ है लेकिन ये इन देशों की जनता के किसी हिस्से में बहुत ज़्यादा है और किसी में बहुत कम है.


इसी तरीके से सूचकांक पर चौथे पायदान पर अमरीका भी असामनताओं को संज्ञान में लेने पर 23वें नंबर पर आ जाता है.


यूएनडीपी में भारत की निदेशक केटलिन वीसेन के मुताबिक, “हमें भारत में औद्योगिक विकास के कार्यक्रमों पर व्यापक अध्ययन कर ये सुनिश्चित करना होगा कि उनसे सतत विकास होता रहे और वो ग़रीब लोगों के लिए भी हो.”

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