करोड़ो दबे-कुचले, शोषित, वंचित, पिछड़ो, आदिवासी, अल्पसंख्यंक आदि बहुजन समाज की आवाज, बहुजन समाज पार्टी के जन्मदाता एवं संस्थापक मान्यवर साहेब कांशीरामजी को उनके 78 वें जन्म दिन 15 मार्च 2012 पर समूचे बहुजन समाज की ओर सै हार्दिक शुभकामनाएं....
मनुवाद, ब्राम्हणवाद के घने अंधरे को चीरकर उदय होता मानवतावाद का प्रखर सूर्य. राष्ट्र नायक, बहुजन नायक – मान्यवर कांशीरामजी....स्वाभिमान का ऐहसास है तो चल, तू मेरे साथ चल,
मूक्ति की गर प्यास है तो चल, तू मेरे साथ चल,
राह से हट जायेंगी खुद, राह की कठिनाईयां.
गर बदलना इतिहास है तो चल, तू मेरे साथ चल..
15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड जिले के खवासपूर गांव में जन्मे मान्य. कांशीरामजी 15 मार्च 2012 को अपने आयु के ७८ साल पुरे करने जा रहे है.. वे आज भी हमारे बीच में है.. कांशीरामजी रामदासिया सिख समाज (चर्मकार) से ताल्लुक रखते है.. जब उनका जन्म हुआ.. उस समय उनके गांव में कांशीराम नाम का एक संतपुरुष रहता था.. उस संतपुरुष की उपासना गांव और आसपास के सभी लोग करते थे.. इसलिए एक दिन इस बालक को आशिवार्द देने के लिए उनकी मां, कांशीराम नाम के संतपरुष के पास लेकर गेई.. उन्होंने इस बालक को आशिवार्द दिया.. उसी संत के नाम से उस बालक का नाम कांशीराम रखा गया.. मान्य. कांशीरामजी के परिवारवालोंने हिंदू धर्म को त्याग कर शीख धर्म का स्वीकार किया था.. सन 1956 में मान्यवर कांशीरामजी रोपड (पंजाब) महाविद्यालयसे बी.एस.सी. पास की.. उसके बाद 1957 में सर्व्हे ऑफ इंडिया की (देहरादून) परीक्षा दी.. उस परीक्षा में भी वह पास हो गये. प्रशिक्षण पुरा होने के बाद मान्य. कांशीरामजी को पुना शहर (महाराष्ट्र) यहां पर एक्सप्लोसिव्ह रिसर्च अँड डेव्हलपमेंट लेबोरेटरी में सर्वश्रेष्ठ प्रथम अधिकारी (वैज्ञानिक अधिकारी) की नौकरी मिली. सन 1964-1965 के दरम्यान इस ऑर्डनन्स फैक्टरी में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर इनके जयंती निमित्त अवकाश न मिलने के कारण एस.सी., एस.टी., वेलफेअर असोसिएशन के अध्यक्ष मा. दीनाभाना इन्होंने तीव्र संघर्ष सुरू करने के कारण व्यवस्थापकने मा. दीनाभाना इनको नौकरी से निलंबित किया गया. उसके बाद डी.के.खापर्डेजी ने दीना भाना को साथ दिया तो खापर्डे साहब को भी नौकरी से निलंबित कर दिया गया. इस घटना की जानकारी जब मान्यवर कांशीरामजी को मिली तब मान्यवर कांशीरामजी ने दीना भाना, डी.के.खापर्डे को लेकर ऑर्डनन्स फैक्टरी का मैनेजर जो दक्षिण भारतीय ब्राम्हण था, उससे मिलने लेकर गये.. एक दरवाजे के छोर पर डी.के.खापर्डे खडे थे, तो दुसरे दरवाजे पर दीनाभानाजी खडे थे.. मान्यवर कांशीरामजी कैबिन के अंदर गये.. और मैनेजरसे डॉ. आंबेडकर जयंती के अवकाश के लिए वादविवाद करने लग गये.. मान्यवर कांशीरामजी को बहुत गुस्सा आया.. उन्होंने ब्राम्हण मैनेजर की कॉलर पकडकर उनका सिर टेबलपर पटक पटकर मारने लगे.. मैनेजर के लहुलुहान हो गया.. मान्यवर कांशीरामजी ने विचार कया था की,, इसको और मारुंगा तो यह मर जाएंगा.. इसलिए उन्होंने ब्राम्हण मैनेजर को छोड़ दिया और बाहर आ गये. इस घटना के बाद ब्राम्हण मैनेजर ने दीनाभानाजी, डी.के.खापर्डेजी को काम पर लिया और मान्यवर कांशीरामजी को निलंबित किया.. यह प्रकरण बाद में न्यायालय में गया.
खापर्डेजी अपने वेतन का सिर्फ 1 हजार रुपया अपने खर्चे लिए रखते थे.. बाकी का पैसा मान्य. कांशीरामजी को देते थे.. डी.के. खापर्डे इन्होंने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर लिखित "एन्हालिशेन ऑफ कास्ट" यह किताब मान्यवर कांशीरामजी को पढ़ने के लिए दी. इस किताब को पढ़ने के बाद मान्यवर कांशीरामजी इन्हें वर्ण और जातियों पर आधारित सामाजिक विषमता, जाती-जमातियों का राजकारण, मनुस्मृति आचारसिंहिता के वजह से शुद्रातिशुद्र बहुजन समाज का शोषण, अस्पृश्यों पर हुए अन्याय अत्याचार इनकी जानकारी प्राप्त हुई. इस वजह से मान्य. कांशीरामजी के मन के उपर डॉ. बाबसाहेब आंबेडकर के विचारों का और उनके संघर्ष का भयंकर परिणाम हुआ... और उसी समय मान्य. कांशीरामजी ने प्रतिज्ञा की की मै, बहुजन समाज को इस देश का राजा बनाकर ही रहूंगा.. उसके बाद उन्होंने 1964 में अपनी नौकरी का त्याग कर दिया.. और सामाजिक परिवर्तन की जवाबदारी अपने खंदे पर लेकर वह आंदोलन के लिए सक्रीय हो गये.
आज से 47 वर्ष पूर्व महान गुरुओं की पवित्र धरती पंजाब में जन्मा तथा सामाजिक क्रांति की उर्वर भूमि महाराष्ट्र में ऊंची सरकारी नौकरी पर आसीन एक नवयुवक अपनी नौकरी, परिवार, धन संपत्ति आदि सब कुछ त्याग कर ऐसे कठिण और दुर्गम रास्ते पर चलना आरंभ हुआ है, जो रास्ता इस देश के करोड़ो दलित-शोषित मूलनिवासी बहुजनों की मनुवादी व्यवस्था से मुक्ति की ओर जाता है. यह वह दौर था जब आधुनिक भारत के निर्माता तथा दलित-शोषित, पिछड़े समाज के पथप्रदर्शक बाबासाहब डॉ. आंबेडकर का कुछ वर्ष पहले देहान्त हुआ तथा पुरा दलित-शोषित व पिछड़ा समाज गहन निराशा व अवसाद के बादलों से घिरा हुआ था. बाबासाहब डॉ. आंबेडकर द्वारा तैयार किये गये लोग निराशा के इस सागर में डूबते हुए मनुवादी राजनैतिक दलों (विशेषकर काँग्रेस पार्टी) के द्वार पर खड़े दस्तक देते नजर आते थे. बाबासाहब द्वारा अथक प्रयासों से खड़ा किया गया सामाजिक आंदोलन विघटन की ओर अग्रेसर था. ऐसे विषम और कठिण दौर में इस युवक ने अपने महापुरुषों के संघर्षों से प्रेरणा लेकर इस अधूरे काम को पुरा करने का बीड़ा उठाया और तमाम दुःख-तकलीफो, कठिण परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हुए इस कांटो से भरे मार्ग पर चलने के लिए अपना पहला कदम बढ़ाया. अपने करोड़ो दलित-शोषित, पिछड़े समाज के बन्धुओं के दुःख-दर्द के प्रति गहन पीड़ा तथा शोषणकारी मनुवादी व्यवस्था के विरुद्ध गहरे आक्रोश से भरा यह नवयुवक जब इस रास्ते पर चलना शुरू हुआ तो शुरू में कुछ लोगों ने खासकर महाराष्ट्र के काँग्रेसी आंबेडकरवादी नेताओं ने इसका विरोध किया, तो कई लोगों ने इसका मजाक भी उड़ाया. लेकिन अपने आत्मविश्वास और अपने मिशन के प्रति एकत्रित समर्पंण भाव तथा अथक परिश्रम के कारण आज वह नवयुवक इतिहास के उस मुकाम पर पहुंच गया है, जहां तक मात्र कुछ एक महामानव ही पहुंच पाते है. आजी इसी नवयुवक को भारत के करोड़ो दलित-शोषित समाज के लोग आदरपूर्वक "मान्वयर साहेब कांशीरामजी" के नाम से जानते है. और जो विस्तृत सामाजिक, राजनैतिक आंदोलन मान्य. साहेब कांशीरामजीने आरंभ किया उसे आज "बहुजन समाज पार्टी" के नाम से जाना जाता है..
तथागत बुद्ध ने भिक्षूओं के लिए जो नियम बताए है.. (1) संपत्ती का संचय नहीं करना (2) संसार का त्याग करना (३) प्रबोधन के लिए भ्रमण करना.. इसी के तर्ज पर मान्यवर कांशीरामजी ने अपने आंदोलन की शुरूआत की. उन्होंने अपनी माताजी को 24 पेज के दृढ संकल्प का एक पत्र भेज दिया था.. उनमें में से कुछ अंश इस प्रकार है.. (1) मै शादी नहीं करुंगा, (2) मै आज के बाद कभी घर नहीं आऊंगा (3) मेरा खुद का कोई परिवार नहीं रहेगा, मेरा परिवार यांनी भारत का दलित-शोषित वंचित समाज के लोग ही रहेंगे. (४) मैं कोई भी संपत्ती ग्रहण नहीं करूंगा (5) मै कोई भी सामाजिक क्रार्यक्रम वाढदिवस, विवाह समारंभ, अंत्ययात्रामें सहभागी नहीं हो सकता (6) मै इसके बाद नौकरी नहीं करूंगा और कौटुंबिक जवाबदारी का भी पालन नहीं करूंगा...
बहुजन समाज में जन्मे, संत, गुरुओं, महारापुरुषों के आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने शासकीय सेवा रोड़ा बनी तो उसे लात मारकर छोड़ दी.. फिर तो भारतीय संविधान के अनुरूप सामाजिक रचना (जाति और वर्गविहिन समाज) करना अपने जीवन का एक मात्र लक्ष्य मानकर चलने लगे. इस लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में आने वाली हर कठिनाई-बाधायें और तकलीफों को अपना हमसफर मान लिया.. मान्यवर कांशीरामजी की सबसे बड़ी पुंजी उनका हौसला था.. जिसके बलबूते पर मान्यवर कांशीरामजी ने अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की..
अपने कैरियर की शुरुआत उन्होंने डॉ. आंबेडकर के समीप में रहने वाले लोगों की तलाश में दरबदर भटकते रहे.. किन्तु वे जब मिले तो इस हालत में कि वे लोग डॉ. आंबेडकर के आंदोलन को नेस्तनाबूद करने वालों की गोद में बैठ चुके थे.. स एक नयी खोज ने कांशीरामजी को काफी पीड़ा पहुंचायी. मान्यवर कांशीरामजी अपने मन में यह ठान लिया कि आंबेडकरवाद के फलने-फुलने में गांधीवाद, ब्राम्हणवाद सबसे बडा बाधक है. उसे खत्म करने के लिए पढ़े-लिखे कर्मचारियों को एकजुट करने 6 दिसंबर 1972 से 6 दिसंबर 19778 तक सतत आगे बढ़ते गये. अगर बहुजन समाज को शासनकर्ती जमात बनाना है तो, इस देश के नोकरदार वर्गको सबसे पहले संगठित करना पड़ेगा.. उनका गैर राजनितिक संगठन बनाना पड़ेगा..क्योंकी जिस समाज का गैर राजनितिक संगठन पक्का होता है.. वह समाज ही राजनितिक में सफल होता है.. ऐसा मान्यवर कांशीरामजी का मानना था. स्वातंत्र्य, समता, बंधुत्व, न्याय, प्रज्ञा, शील, करुणा इनको प्रस्थापित करके शोषणमुक्त समाजव्यवस्था निर्माण करने के लिए संघर्षशील रहने वाली विचारधारा याने आंबेडकरवाद.. इस देश में आंबेडकरवाद को सफल बनाने के लिए समाज परिवर्तन (जातिवाद का नाश), शासनकर्ती जमात, और भारत बौद्धमय करना आवश्यक है.. यह सब करने के लिए अपने आप में एक शक्ति पैदा करना पडेगा.. और उस शक्ती को तैयार करने के लिए एक संगठन और संगठन को चलाने के लिए कार्यकर्ताओं की आवश्यकता हो सकती है.. और कार्यकर्ताओं को इकठ्ठा लाने के लिए एक विचारधारा का होना जरुरी है. . और विचारधारा के प्रसार व प्रचार के लिए योग्य नेतृत्व की जरुरत है.. इस नेतृत्व के पास योजनाबद्द कार्यक्रम होने चाहिए.. क्योंकी योजनाबद्ध (प्लानिंग) कार्यक्रमों से जनता जागृत होती है, जागृत जनता के द्वारा आंदोलन के माध्यम से शक्ती का निर्माण होता है.. और इसी शक्ती के जोर पर बहुजन समाज इस देश का हुक्मरान समाज बन सकता है.. ऐसा मान्यवर कांशीरामजी का मानना था. इसी के आधार पर उन्होंने कोई भी मोव्हमेंट को कामयाब बनाना है तो मोव्हमेंट चलाने के लिए (Tallent, Tension and Tresure) तन, मन, धन (बुद्धी, श्रम, और पैसा) की आवश्यकता होती है.. इसी को देखते हुए उन्होंने 6 दिसंबर 1972 को बामसेफ (Backward and Minorities Communities Employees Federation) यह संघटना का स्थापित की.. लेकिन उसे नाम दिया गया "कान्सेप्शन ऑफ बामसेफ" इसका अर्थ यह होता है की बामसेफ की गर्भधारणा, लगातार 6 साल तक देशभर के कमर्चारियों को संगठित करने के बाद उन्होंने 6 दिसंबर 1978 को दिल्ली के बोटक्लब मैदान पर बामसेफ का राष्ट्रीय अधिवेशन लिया.. और विधिवत रुप से बामसेफ नाम के संगठन की घोषणा की.. बर्थ ऑफ बामसेफ.
मा. कांशीरामजींने 6 दिसंबर 1981 को डी.एस.फोर (दलित-शोषित समाज संघर्ष समिती) इस सामाजिक संगठना का निर्माण किया.. इस संगठन के माध्यम से जनता में महापुरुषों के विचारों के प्रति जागृती पैदा की.. उसके लिए मान्यवर कांशीरामजीने जम्मू से लेकर कन्याकुमारी तक साईकल से जनजागरण यात्र करके पुरे देश में धुम मचाई.. 15 मार्च 1983 को अपने आयु के 50 वे साल में प्रवेश करते हुए मान्य कांशीरामजीने "बहुजन समाज की समस्या यही भारत की असली समस्या है" इस मुद्दे पर जम्मू से लेकर कन्याकुमारी तक 3000 हजार किलोमीटर और 40 दिन का प्रवास पुरा किया. राष्ट्रीय स्तर पर चार बडे मार्च आयोजित किये गये थे. दक्षिण भारत के कन्याकुमारी, उत्तर-पूर्वीसे कोहिमा, पश्चिमसे पोरबंदर, पूर्वी भारतसे पुरी यहां से "अखंड संघर्ष" सायकल मार्चकी 6 दिसंबर 1983 को शुरुवात हुई. 15 मार्च 1984 को दिल्ली यहां पर सायकल मार्च का समारोप हुआ. इस सायकल मार्च में 3 लाख लोगोंने सहभाग लिया था. इसी के माध्यमसे मान्यवर कांशीरामजी ने बाबासाहब की विचारधारा को संपूर्ण भारत के कोने कोने में पहुंचाने का कार्य किया.. इस दरम्यान नारे लगते थे.. "जयभीम का नारा गुंजेगा, भारत के कोने कोने में.." आर्थिक और सामाजिक विषमता दूर करने के लिए मान्यवर कांशीरामजी ने 4 प्रमुख घटक बताये थे.. 1) गरज (Need), 2) संघर्ष (Struggle), 3) इच्छा (Desire), 4) बदल (Change), = परिवर्तन.
मान्यवर कांशीरामजी ने रिपब्लिकन पार्टी में 4 साल तक काम किया था. उस समय उन्होंने देखा था की रिपब्लिकन पार्टी के नेता आपस में ही लढ़ते झगडते रहते थे.. रिपाई नेता लोग अपने मूल उद्देश से भटकते जा रहे थे.. रिपब्लिकन पार्टी की टुट को बचाने का प्रयास उन्होंने बहोत बार किया.. लेकिन सफल नहीं हो पाये. किसी भी रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने मान्यवर कांशीरामजी की बात नहीं मानी. और रिपब्लिकन पार्टी के अलग अलग गुट बनाना प्रारंभ हो गया और रिपब्लिकन पार्टी को असफलताओं के दौर से गुजरना पड़ा इसी अनुभव को देखते हुए मान्यवर कांशीरामजी को ऐसा लगा की अपनी खुद की स्वतंत्र राजनितिक पार्टी होना जरुरी है.. क्योंकी इसी के सहारे बहुजन समाज के प्रश्न को हल किया जा सकता है.. इसी को ध्यान में रखते हुए मान्यवर कांशीरामजी ने डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के जन्मदिन के अवसर पर 14 अप्रैल 1984 को दिल्ली में "बहुजन समाज पार्टी " की स्थापना की.. बहुजन समाज पार्टी को चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड करके, बाबासाहब का चुनाव चिन्ह हाथी वापस लिया..
पार्टी स्थापना के बाद पीछे मुडकर कभी नहीं देखा. कभी साईकिल रैली, कभी धरना-प्रदर्शन, कभी जनसभाएंकर समाज में एकजटुता पैदा करना मान्यवर कांशीरामजी के जीवन का प्रमुख अंग बन गया. अंगारो और कांटो पर चलना मान्यवर की एक आदत हो गई.. पिर तो भूख-प्यास, नींद और आराम करना जैसे हराम हो गया. दिन में सभाएं करना और रात में कार्यकर्ताओं को आंदोलन के गुर(सूत्र) सिखाना, उनकी समस्याओं को सुनना और कठिनाईयों से लड़ने की प्रेरणा देना मान्यवर कांशीरामजी के दिनचर्या में शामिल हो गया.
मान्यवर कांशीरामजी का पुरा जीवन विपरित परिस्थितियों से जुझते तथा उन्हें परास्त कर आगे बढ़ते रहने की अन्त गाथा है. ऐसी तकलीफे, बाधाये जो कि मजबूत से मजबूत मन-मस्तिष्क वाले व्यक्ति की हिम्मत तोड़ने के लिए काफी है. लेकिन मान्यवर कांशीरामजी के मजबूत इरादों और अद्वितिय व्यक्तित्त्व से टकराकर चूर-चूर होकर उनके रास्ते में बिखर गयी. जिस मानवतावादी समाज व्यवस्था का स्वप्न लेकर मान्य. कांशीरामजी ने आज से 47 साल अधिक वर्ष पहले जिस रास्ते पर चलने का प्रण लिया था. उसकी मंजिल के द्वार तक आज बहुजन आंदोलन खड़ा नजर आता है. इन 47 सालों में देश के कोने-कोने में घूम-घूम कर, सदियों से सोये हुए समाज को जगाने के लिए जो अथक प्रयास मान्य. कांशीरामजीने किये है, वह जहां एक ओर बहुजन समाज के मन में अपने मन में श्रद्धा, सम्मान और प्यार भर देता है, वहीं इसके साथ ही उनसे प्रेरणा लेकर उनके दिखाये गये रास्ते पर चलने के लिए भी प्रेरित करता है.
मान्य. कांशीरामजी एक विलक्षण व्यक्तित्व- मान्यवर जी संभवतः देश के इतिहास में बाबासाहब के बाद पहले एवं एकमात्र जननेता है, जिन्होंने इस देश के हर जिले से लकर गांव-गांव तक (कई-कई बार) स्वयं जाकर बहुजन समाज को जागृत करने के लिए जमिनि काम किया है. उनके लिए किसी स्थान पर जाने का अर्थ (मनुवादी नेताओं की तरह) केवल किसी अच्छे होटल या सरकारी सर्किट हाऊस में एक-दो रात व्यतीत करना नहीं होता है, बल्कि उनका समय उस जिले-स्थान के सुदूर गांव, कस्बों, झोपडियों तक स्वयं. परुंच कर हताश और निराशा दलित-शोषित समाज को जागृत करना तथा उनमें नये उत्साह का संचार करना होता है. मान्य. कांशीरामजी ऐसे अकेले नेता है कि जितना पैदल सफर, साईकिल पर सफर, बस से सफर, रेलगाडी में सफर उन्होंने इस देश के करोड़ो बहुजनों के घरों, बस्तियों तक पहुंचाने के लिए किया है वह एक ऐसा रिकार्ड है जिसका मुकाबला कोई भी मनुवादी नेता करना तो दूर, सोच भी नहीं सकता. उनकी इसी कड़ी मेहनत तथा अट्ट निष्ठा से प्रेरणा लेकर आज बहुजन आंदोलन में लाखों समर्पित कार्यकर्ताओं की एक ऐसी "फौज" पुरे देशभर में तैयार हो चुकी है जो अपने नेताओं के एक हल्के से इशारे पर चट्टान को भी हिलाने का सामर्थ्य रखते है. उन्होने देनेवाले कार्यकर्ता तैयार किये है.. ऐसे ही समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं के बल पर आज बहुजन आंदोलन अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा है. आज बहन कु. मायावतीजी मान्य. कांशीरामजी के दिशा-निर्देशानुसार और अधिक ऊर्जा और उत्साह के साथ इस मूव्हमेंट को आगे बढ़ाने के लिए कार्यरत नजर आती है.
साहेब कांशीरामजी प्रकृति प्रेमी ही नहीं, बल्कि उससे प्रेरणा लेकर, सबक सीखकर अपने जीवन में उतारने का काम भी करते है.. जिस प्रकार पहाड़ से निकला हुआ झरना नदी बनने के बाद सतत आगे ही आगे बढ़ता है पीछे मुडता नहीं.. उसी प्रकार मान्य. कांशारामजी सदैव अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते रहे है.. कांशीरामजी विज्ञान के छात्र रहे है.. विज्ञान क उन्होंने भलीं-भांति समझकर भारत के बहुजन समाज को आंकड़ो क खेल, "पिचासी पर पंद्रह" का शासन चलना न केवल प्रजातंत्र के लिए घातक बताया, बल्कि 85 प्रतिशत समाज क हुक्मरान समाज बनाने के लिए पहली बार उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और पंजाब तथा गोवा के विधानसभा चुनाव मैदान में अपने प्रत्याशी खडा किये तथा उसकी के आधार पर 14 अप्रैल 1984 को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के जयंती दिन पर बहुजन समाज पार्टी का गठन किया. और फिर नीले झंडे के निचे देश के दबे-कुचले समाज को संगठित करने का क्रम शुरू हुआ. प्रारंभ में इस पार्टी के कोई नुमाईंदे जीत न सके, किन्तु शासक दल की तमाम सियासती गणित को अवश्य चकनाचूर करमें में बसपा कामयाब हुई.. प्रजातंत्र के इस पहले प्रयोग से साहेब कांशीरामजी को और अधिक काम करने के लिए प्रेरित किया.. शेर-ए-पंजाब की ब्राम्हणवादियों के खिलाफ दहाड़ ने बहुजन समाज में एक नया हौसला जगाया.. आशा की नई किरण को जन्म दिया. जब बहुजन समाज पार्टी से उ.प्र. में 2 तथा पंजाब से एक खासदार (सासंद) निर्वाचित होकर लोकसभा पहुंचने में सफल हुए. फिर क्या था, इसके बाद कबी भी की दल लोकसभा में बहुमत के साथ चुनकर नहीं आ सका और न ही उनकी सरकार निर्बंध रुप से (स्थिर) चल सकी.
बहुजन समाज पार्टी 6 वर्ष के बाल्यकाल में ही अपने दम पर चुनाव लडकर उ.प्र. के साथ ही मध्यप्रदेश और पंजाब के विधानसभा में सदस्य भेजकर अपनी उपस्थिति का अहसास कराया और स तर से डॉ. बाबासाहब आंबेडकरजी का जो हाथी उनके जीवन के साथ ही जंगलों में को गया था, उसे मान्वयर कांशीरामजी ने भारत के मनुवादियों से संघर्ष कर गांव और शहरों में हाथी की ताकत बताकर विधानसभाओं और लोकसभातक पहुंचाने में कामयाबी हासिल कर यह साबित कर दिया कि, "सच्ची तमन्ना हो तो रास्ते निकल ही जाते है.." यूं तो देश बर में मान्य. कांशीरामजी ने बहुजन समाज के साथ होने वाले अन्याय-अत्याचार के खिलाफ जनसभाओं के माद्यम से आंदोलन तेजी से चलाये है, किन्तु देश की सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश को उन्होंने मनुवादियों का गढ़ मानकर सर्वाधिक प्रभावी तरीके से आंबेडकरी आंदोलन को चलाया. उत्तर प्रदेश का समाज अपनी गुलामी को तेजी से समझा और डॉ. बाबासाहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान को स्वतः चलाने की क्षमता अपने आप मैं पैदा की.. इसी का परिणाम है कि उ.प्र. बहन कु. मायावतीजी के नेतृत्व में सन 1995 में प्रथम बार साढ़े चार महिने के लिए, तथा दुसरी बार 6 महीने की सरकार 1997 में भारतीय सामाजिक व्यवस्था के यथास्थिति की विचारधारा वाली राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से सरकार चलाने का मौका प्रायोगिक तौर से मिला. इन ग्यारह महिने के अपने कार्यकाल में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया अथवा उसके दबाव में आकर कोई फैसला नहीं लिया गया, भले ही दोनों बार सराकर जाती रही. जिस उत्तर पर्देश में कांग्रेस कभी दो तिहाई से अधिक बहुमत से सरकार चलाती रही, उसी प्रदेश में कांग्रेस की मिट्टी पलीद मान्यवर कांशीरामजी के नेतृत्व ने कर दिखाया.. इसी का परिणाम है, अब देश में और दुसरे कुछ प्रदेशों में भी गठबंधन की सरकार का गठन मजबुरी में ही सही, जरुरी हो गया है. जिस प्रकार रेल की दो पटरी आदि से अन्त तक कबी भी आपस में नहीं मिल सकती, किन्तु उस पथ पर रेलगाड़ी चलायी जाती है, उसी शैली से उत्तरप्रदेश में भाजपा जैसी मनुवादी विचारंवाली पार्टी को मान्यवर कांशीरामजी ने सरकार चलाने के लिए फिर से एक बार मजबूर कर दिया. मान्यवर कांशीरामजी के मार्गदर्शन ने उत्तर प्रदेश में एक सफल व सक्षम नेतृत्व दिया है और वहां की जनता के लिए अमन और चैन का जीवन बहाल किया. राष्ट्रीय स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलन उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के ऐतिहासिक मैदान पर बहुजन समाज के हित में सत्ता और संगठन में से संगठन को ही ज्यादा महत्त्वपूर्ण स्थान देते हुए बहन कु. मायावतीजी को पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तराधिकारी 22 सितंबर 2003 को राष्ट्रीय कार्याकिरणी के सर्वसम्मती से सौंप कर महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी..
मान्य. कांशीरामजी ने कहा था.. एक दिन में बहुजन समाज को इस देश का हुक्मरान समाज बनाकर रखुंगा और बाबासाहब का दुसरा बड़ा स्वप्न "पुरा भारत बौद्धमय करना है" इसी के तर्ज पर सम्राट अशोक का भारत बनाऊंगा इसी भविष्यवाणी से प्रेरणा लेकर आज बहुजन आंदोलन का हर एक सिपाही मनुवादी हुक्मरानों को धूल चटाने के लिए कमरकस कर खड़ा हुआ नजर आ रहा है. इन चुनावों के बाद इस देश के राजनैतिक क्षितिज "मानवतावाद का उदय" और "मनुवाद का अस्त" के स्पष्ट संकेत नजर आ रहे है. मान्यवर कांशीरामजी के 78 में जन्मदिन के शुभ अवसर पर बहुजन समाज अपने मसीहा को उपहार स्वरुप यह प्रण लेता है कि मान्यवर कांशीरामजी के स्वप्न को पुरा करने के लिए बहुजन समाज का हर एक व्यक्ति अपना तन-मन-धन समर्पित कर इस ऐतिहासिक आने वाले 2014 के लोकसभा के चुनावी समर में अपना योगदान देगा और बहन मायावती को प्रधानमंत्री पद पर विराजमान करेगा... जयभीम.
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