Facebook

अन्ना के आन्दोलन का विरोध क्यों कर रहे है दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक?



- सुरेश राव ।।

देश में जो अन्ना टीम का आन्दोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहा है.शुरू से ही देश के तमाम संगठन उसका विरोध कर रहे है.और उसमे भी महत्वपूर्ण बात ये है ये संगठन दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों से सम्बंधित है। ये संगठन शुरू से ही अन्ना के आन्दोलन के खिलाफ हैं बामसेफ , इंसाफ व लगभग 13 दूसरे संगठनो ने दिल्ली में जंतर -मंतर पर अन्ना के आन्दोलन के खिलाफ 1 से 5 अगस्त तक धरना प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति और प्रधानमत्री को ज्ञपन दिया।


इन ज्ञापनों में इन संगठनों ने साफ -साफ कहा कि अन्ना का आन्दोलन इस बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ एवं भारतीय संविधान की मंशा के विपरीत है। अनुसूचित जाति और जनजाति कर्मचारी परिसंघ शुरू से ही उदित राज के नेतृत्व में अन्ना एवं उनके बिल का विरोध कर रहे है। उनकी जस्टिस पार्टी भी शुरू से ही इसका विरोध कर रही है।
26 अगस्त को मुंबई में तमाम संगठन अन्ना टीम के खिलाफ आन्दोलन किया। 1 सिप्ताबर को दिल्ली में भारत मुक्ति मोर्चा माननीय वामन मेश्राम, एच.डी.देवेगौड़ा, शरद यादव, रामविलास पासवान आदि के नेतृत्व में अन्ना टीम के विरोध में बड़ी रैली करने जा रहे है।
आखिर क्या कारण है कि देश के दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक अन्ना के विरोध में है? टीम अन्ना से अलग हुए स्वामी अग्निवेश ने सामाजिक न्याय के मुद्दे पर इस टीम को छोड़ा है। मतलब साफ है कि अन्ना और उनकी टीम सामाजिक न्याय से कोई वास्ता नहीं रखती। शायद यही कारण है कि अन्ना आरक्षण विरोधी लोगों के साथ हैं।
जब गुजरात में मुसलमान मारे जा रहे थे, उड़ीसा में इसाई मरे जा रहे थे, मुंबई से उत्तर भारतीय भगाए जा रहे थे तब अन्ना जी के पास इन्सान और इंसानियत के लिए बिलकुल समय नहीं था। इन्सान और इंसानियत से महत्वपूर्ण भला और कुछ हो सकता है क्या ? लेकिन अन्ना और उनकी टीम का इसमें कोई इंटेरेस्ट नहीं है.. अन्ना जी का ..एन.जी.ओ. चलाने वाले और कॉरपोरेट जगत को लोकपाल के दायरे से अलग रखना भी संदेह पैदा करता है।
शायद सही समय अग्निवेश जी को बुद्धि आई और उन्होंने अन्ना का साथ छोड़ दिया। दलित, आदिवासी, पिछड़े व अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा देश में बड़े पैमाने पर हो रहे विरोध को देख कर एसा लगता है कि इस देश का बहुसंख्यक समुदाय अन्ना और उनके बिल के पूरी तरह खिलाफ है। सरकार जो भी निर्णय करे परन्तु उसे लोकतंत्र की गरिमा और बहुशंख्यक समुदाय की भावनाओं का ध्यान तो रखना ही होगा, वरना अगले चुनाव में जनता अपना निर्णय देगी।
(लेखक इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में एडवोकेट हैं)

0 comments:

Post a Comment

 
Copyright 2011 Mulnivasi Sangh